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जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग बंद, भूस्खलन ने मचाई तबाही, सफाई और मरम्मत में लग सकते हैं छह दिन

स्खलन से प्रभावित जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग सोमवार को लगातार दूसरे दिन भी बंद रहा। राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि राजमार्ग से मलबा हटा कर यातायात के लिए उसकी बहाली में लगभग छह दिन लग सकते हैं। रविवार को भारी बारिश होने और बादल फटने से रामबन जिले में अचानक आई बाढ़, भूस्खलन और कीचड़ भरे मलबे के कारण यह सामरिक रूप से महत्वपूर्ण 250 किलोमीटर लंबा राजमार्ग बंद हो गया था। यह राजमार्ग कश्मीर को देश के अन्य हिस्सों से जोड़ने वाला, हर मौसम में खुला रहने वाला एकमात्र रास्ता है। इस आपदा में दो नाबालिग भाई-बहन समेत तीन लोगों की मौत हो गई, जबकि 100 से अधिक लोगों को बचाया गया। आपदा में कई सड़कों और आवासीय इमारतों सहित अवसंरचना को नुकसान पहुंचा और कई वाहन मलबे में दब गए।

एनएचएआई के परियोजना निदेशक पुरुषोत्तम कुमार ने बताया, “सीरी और मारूग के बीच चार किलोमीटर के हिस्से में कुछ जगहों पर तो 20 फुट से अधिक ऊंचा मलबा जमा हो गया है जिससे स्थिति चुनौतीपूर्ण हो गई है। हमारी भारी मशीनें भी मलबे में दब गई हैं।” उन्होंने बताया कि अपने सीमित संसाधनों के बावजूद प्राधिकरण ने निजी ठेकेदारों से मशीनें मंगवाकर प्रभावित स्थानों पर बहाली कार्य में लगाया है। कुमार ने कहा कि मौसम में सुधार हुआ है और यदि सब कुछ अनुकूल रहा तो राजमार्ग को पांच से छह दिन में फिर से यातायात के लिए खोल दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि पंथियाल और केला मोड़ के पास राजमार्ग को काफी नुकसान पहुंचा है। इस बीच, भूस्खलन से प्रभावित जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग बंद होने से वहां फंसे हुए कई यात्री पैदल ही अपने गंतव्य की ओर बढ़ते दिखे।

राजस्थान के निवासी देवीलाल ने बताया, “सड़क कई स्थानों पर पूरी तरह से नष्ट हो गई है। स्थिति बहुत खराब है।” वह कश्मीर के बडगाम जिले के मागम क्षेत्र से घर लौट रहे थे। जमना नाम की एक महिला अपने कंधे पर एक छोटे बच्चे को लेकर संभल-संभल कर चल रही थी। उसने बताया कि अभी भी पहाड़ियों से पत्थर और चट्टानें गिर रही हैं और स्थिति डरा देने वाली है। उन्होंने कहा, “हमने पिछले दो दिनों से खाना नहीं खाया है।” विवाह के पारंपरिक परिधान में नजर आ रहे ज़हीर अहमद और ज़हीरा बानो को अपने नए जीवन की ओर एक सुगम यात्रा की उम्मीद थी, लेकिन उन्हें चेनानी से रामबन तक पैदल चलना पड़ा। अहमद ने कहा, “यह थका देने वाला था, लेकिन एक तरह से इसने दिन को और खास बना दिया। लेकिन मैं नहीं चाहता कि किसी और को ऐसा अनुभव हो।”

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