ठंड की अपेक्षा गर्मी से होने वाली मौतें औसतन 4.4 गुना अधिक

नई दिल्ली। शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन के इस दौर में शहर अब केवल विकास और आधुनिकता के प्रतीक नहीं रहे बल्कि वे एक नई पर्यावरणीय चुनौती ‘हीट आइलैंड’ का केंद्र बन चुके हैं। यह परिघटना (फेनोमेना) जिसमें शहरी क्षेत्रों का तापमान आसपास के ग्रामीण इलाकों की तुलना में अधिक हो जाता है। यह मानव स्वास्थ्य के लिए घातक है। एक ओर यह सर्दियों के मौसम में ठंड से होने वाली मौतों को प्रभावित कर सकती है तो दूसरी ओर गर्मियों में जानलेवा गर्मी के प्रभावों को और भी घातक बना देती है।
साइंटिफिक जर्नल नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित एक शोध के अनुसार 3,000 से अधिक शहरों में मृत्यु दर और तापमान के बीच संबंधों का विश्लेषण किया गया। इस शोध में रिमोट सेंसिंग डाटा, जलवायु और सामाजिक-आर्थिक आंकड़ों का सहारा लिया गया। नतीजों से पता चलता है कि शहरी हीट आइलैंड की वजह से ठंड से होने वाली मौतों में जो गिरावट देखी गई, वह गर्मी से संबंधित मौतों में हुई बढ़ोतरी से औसतन 4.4 गुना अधिक थी। उदाहरण के तौर पर मॉस्को जैसे उच्च अक्षांश वाले शहरों में यह अंतर और भी अधिक था, जहां ठंड से मौतों में आई कमी गर्मी से हुई मौतों की तुलना में 11.5 गुना अधिक रही। शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि यह परिघटना समग्र रूप से स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो सकती है, खासकर जब गर्मियों की तपन में अत्यधिक वृद्धि होती है।
रात के समय होने वाली ठंडक की दर में गिरावट
अधिकांश शहरों में रात के समय होने वाली ठंडक की दर में गिरावट आई है, जो पहले गर्मी से राहत का एक स्वाभाविक उपाय हुआ करती थी। रिपोर्ट इस बात पर बल देती है कि हीट वेव और अत्यधिक गर्मी की स्थितियों में जनस्वास्थ्य की रक्षा के लिए एक ठोस आपातकालीन कार्य योजना तैयार की जाए। यह योजना न केवल तत्काल राहत प्रदान कर सकती है बल्कि दीर्घकालिक रणनीतियों की आधारशिला भी बन सकती है।
ठोस उपाय जरूरी
शहरी तापमान को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न रणनीतियां अपनाई जा रही हैं जैसे पौधरोपण, इमारतों की परावर्तक क्षमता (अल्बेडो) में वृद्धि और शीतलन सामग्री का प्रयोग। ये उपाय गर्मी के प्रभाव को सीमित करने में मददगार हो सकते हैं। शोधकर्ताओं का सुझाव है कि इन उपायों को मौसम आधारित दृष्टिकोण के साथ लागू किया जाए ताकि वे एक मौसम में राहत देने के साथ-साथ दूसरे मौसम में जोखिम न बढ़ाएं।