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वन नेशन, वन इलेक्शन: एक नई राजनीतिक दिशा

नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक महत्वपूर्ण वादा पूरा करते हुए ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। इसके अंतर्गत लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ आयोजित किए जाएंगे। सरकार इस विषय पर संसद के शीतकालीन सत्र में विधेयक पेश करने की योजना बना रही है। उल्लेखनीय है कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित एक समिति ने मार्च में इस विषय पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, जिसमें यह सुझाव दिया गया था कि पहले चरण में लोकसभा और राज्यसभा के चुनावों को एक साथ कराना चाहिए।

‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ का मतलब

‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ का तात्पर्य है कि भारत में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं। इसके साथ ही स्थानीय निकायों के चुनाव भी एक निश्चित समय में आयोजित करने का प्रस्ताव है। प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि चुनावों की प्रक्रिया को एकत्रित करने से राजनीतिक व्यस्तता कम होगी और प्रशासनिक दबाव भी घटेगा।

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

भारत में एक साथ चुनाव कराने का विचार नया नहीं है। स्वतंत्रता के बाद से 1967 तक लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ हुए थे। इसके बाद राज्यों के पुनर्गठन और अन्य कारणों से चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे।

मोदी सरकार का दृष्टिकोण

मोदी सरकार ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ को कई कारणों से आवश्यक मानती है:

  1. चुनावों की संख्या में कमी: इससे नागरिकों को बार-बार चुनावों से राहत मिलेगी।
  2. खर्च में कमी: लगातार चुनाव कराने से होने वाले भारी खर्च को कम किया जा सकेगा।
  3. राजनीतिक स्थिरता: यह प्रणाली राजनीतिक स्थिरता लाने में सहायक हो सकती है।
  4. विकास पर ध्यान: सरकारें चुनावी मोड में जाने के बजाय विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगी।

कमेटी की सिफारिशें

रामनाथ कोविंद की समिति ने सिफारिश की है कि पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराए जाएं, और इसके 100 दिन के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव भी आयोजित किए जाएं। समिति ने यह भी कहा कि संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी, जिसमें अनुच्छेद 83 और 172 में बदलाव करना होगा।

चुनौतियाँ

हालांकि, इस प्रणाली को लागू करने में कई चुनौतियाँ भी हैं:

  1. संवैधानिक संशोधन: इसके लिए संविधान में बदलाव आवश्यक है, जो कि एक जटिल प्रक्रिया है।
  2. भंग होने की स्थिति: अगर लोकसभा या किसी राज्य विधानसभा को भंग किया जाता है, तो चुनावों का क्रम बनाए रखना मुश्किल हो सकता है।
  3. प्रशासनिक आवश्यकताएँ: एक साथ चुनाव कराने के लिए अधिक संख्या में ईवीएम और प्रशासनिक अधिकारियों की जरूरत होगी।

राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया

इस विषय पर सभी राजनीतिक दलों की राय एक नहीं है। कुछ दल मानते हैं कि इससे राष्ट्रीय दलों को फायदा होगा, जबकि क्षेत्रीय दल इसे अनुचित मानते हैं। उन्हें आशंका है कि राष्ट्रीय मुद्दों की तुलना में क्षेत्रीय मुद्दे दब सकते हैं।

‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ का प्रस्ताव भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है, लेकिन इसे लागू करने के लिए आवश्यक चुनौतियों का सामना करना होगा। यह आवश्यक है कि सभी राजनीतिक दल और संस्थाएं मिलकर इस विषय पर सकारात्मक चर्चा करें ताकि लोकतंत्र को और मजबूती मिले।

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