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National : क्या है बिलकिस बानो केस? सुप्रीम कोर्ट से आया फैसला, सभी दोषियों को जाना होगा जेल

Bilkis Bano के दोषियों की रिहाई के मामले में आज सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की रिहाई का फैसला रद्द कर दिया है। कोर्ट ने याचिका को सुनवाई योग्य माना है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, महिला सम्मान की हकदार हैं। राज्य इस तरह का निर्णय लेने के लिए सक्षम नहीं है और इसे धोखाधड़ी वाला कृत्य करार दिया। जस्टिस बीवी नागरथाना और उज्जवल भुइंया की बेंच ने फैसला सुनाया और कहा, 11 दोषियों की जल्द रिहाई को चुनौत देने वाली बिलकिस बानो की याचिका वैध है। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि दोनों राज्यों के लोअर कोर्ट और हाई रोर्ट फैसले ले चुके हैं। ऐसे में कोआ आवश्यकता नहीं लगती है कि इसमें किसी तरह का दखल दिया जाए। अब दो हफ्ते के अंदर दोषियों को सरेंडर करना होगा।

2022 में गुजरात सरकार ने किया दोषियों को रिहा

बता दें की साल 2002 में गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बाने के साथ गैंगरेप हुआ था। इसमें 11 लोग दोषी थे। गुजरात सरकार ने अगस्त 2022 में बिलकिस बानो गैंगरेप केस में उम्रकैद की सजा पाए सभी 11 दोषियों को रिहा कर दिया था। दोषियों की रिहाई को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। इस मामले पर आज फैसला आया है जिसके बाद अब दोषियों को जेल जाना होगा।  

12 अक्टूबर को फैसला रखा सुरक्षित

इस मामले पर फैसला जस्टिस नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुयन की बेंच फैसला सुनाएगी। बेंच ने पिछले साल 12 अक्टूबर को मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था। मामले पर लगातार 11 दिन तक सुनवाई हुई थी। सुनवई के दौरान केंद्र और गुजरात सरकार ने दोषियों की सजा माफ करने से जुड़े ओरिजिनल रिकॉर्ड पेश किए थे।

इन दोषियों को मिली थी रिहाई

बता दें कि गुजरात सरकार ने दोषियों की सजा माफ करने के फैसले को सही ठहराया था। समय से पहले दोषियों की रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल भी उठाए थे। हालांकि, कोर्ट ने कहा था कि वो सजा माफी के खिलाफ नहीं है, बल्कि ये स्पष्ट किया जाना चाहिए कि दोषी कैसे माफी के योग्य बने। सुनवाई के दौरान एक दोषी की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा ने दलील दी थी कि सजा माफी से दोषी को समाज में फिर से जीने की उम्मीद की एक नई किरण दिखी है,और उसे अपने किए पर पछतावा है। इस मामले पर जिन दोषियों को रिहाई मिली है, उनमें जसवंतभाई नाई, गोविंदभाई नाई, शैलेष भट्ट, राधेश्याम शाह, बिपिन चंद्र जोशी, केसरभाई वोहानिया, प्रदीप मोरधिया, बाकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चंदाना शामिल हैं। इन दोषियों की रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर हुई थीं। चुनौती देने वालों में बिलकिस बानो के अलावा सीपीएम नेता सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लॉल और टीएमसी की पूर्व सांसद महुआ मोइत्रा भी शामिल हैं।

क्या है BILKIS BANO CASE का पूरा मामला ?

27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के कोच को जला दिया गया था। इस ट्रेन से कारसेवक लौट रहे थे। इससे कोच में बैठे 59 कारसेवरों की मौत हो गई थी। इसके बाद दंगे भड़ग गए थे। दंगो की आग से बचने के लिए बिलकिस बाने अपनी बच्ची और परिवार के साथ गांव छोड़कर चली गई थीं। बिलकिस बाने और उसका परिवार जहां छिपा था, वहां 3 मार्च 2002 को 20-30 लोगों की भीड़ ने तलवार और लाठियों से हमला कर दिया। भीड़ ने बिलकिस बानो के साथ बलात्कार किया। उस समय बिलकिस 5 महिने की गर्भवती थी। इतना ही नहीं, उनके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या भी कर दी गई। बाकी 6 सदस्य वहां से भाग गए थे।

2008 में मिली उम्रकैद की सजा 

इस घटना पर नाराजगी जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए थे। इस मामले के आरोपियों को 2004 में गिरफ्तार कर लिया गया। इस मामले का ट्रायल अहमदाबाद में शुरु हुआ था। बाद में बिलकिस ने चिंता जताई कि यहां मामला चलने से गवाहों को डराया- धमकाया जा सकता है और सबूतों से छेड़छाड़ की जा सकती है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले को अहमदाबाद से मुंबई ट्रांसफर कर दिया। 21 जनवरी 2008 को स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। स्पेशल कोर्ट ने 7 दोषियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। जबकि, एक दोषी की मौत ट्रायल के दौरान हो गई थी। बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी दोषियों की सजा को बरकरार रखा। 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को बिलकिस बानो को 50 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया। साथ ही बिलकिस को नौकरी और घर देने का आदेश भी दिया था।   

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