रायपुर . छत्तीसगढ़ सराफा एसोसिएशन के 30 साल के इतिहास में दूसरी बार मतदान से चुनाव होना तय है। रायपुर के साथ बिलासपुर के भी सराफा कारोबारी चुनाव लड़ने का मन बना चुके हैं। अध्यक्ष पद के लिए ही आधा दर्जन से ज्यादा दावेदारों के नाम अभी से सामने आ रहे हैं। इस बार किसी भी हाल में सर्वसम्मानित से चुनाव नहीं होगा, यह तय है।
एसोसिएशन का चुनाव करीब डेढ़ साल विलंब से अब जाकर नए साल में सात जनवरी को राजधानी रायपुर में होगा। एसोसिएशन के तीन पदों अध्यक्ष, सचिव और कोषाध्यक्ष का चयन प्रदेशभर के सराफा संघों के पदाधिकारी मतदाता करेंगे। इसके अलावा और किसी को मतदान का अधिकार नहीं होगा। मतदान करने वाले संघों के लिए यह जरूरी होगा कि वे शुल्क जमा कर दें। शुल्क जमा न करने वाले संघों के पदाधिकारियों को मतदान से वंचित होना पड़ेगा। इसी के साथ जो भी नए संघ जुड़ेंगे, उनके भी तीन पदाधिकारियों को मतदान का अधिकार रहेगा।
1993 में बना था एसोसिएशन
मप्र के जमाने में ही 10 अक्टूबर 1993 में राजनांदगांव में छत्तीसगढ़ सराफा एसोसिएशन का गठन कर लिया गया था। प्रदेश के तीन दशक पुराने छत्तीसगढ़ सराफा एसोसिएशन के चुनाव में सीधे सदस्य को मतदान का अधिकार नहीं होता। इसमें प्रदेश के जो भी संघ हैं, उनके तीन पदाधिकारियों अध्यक्ष, सचिव और कोषाध्यक्ष को ही मतदान का अधिकार रहता है। संघ बनाने के लिए यह जरूरी है जिस शहर में संघ बनाया जा रहा है, वहां पर कम से कम सात सराफा कारोबारी हों। अगर ऐसा नहीं है, तो आसपास के शहर, गांव से भी दूसरे कारोबारियों को मिलाकर संघ बनाया जा सकता है। प्रदेश में यूं तो 80 सराफा एसोसिएशन हैं, लेकिन पिछली बार जब दुर्ग में चुनाव हुआ था, तो उस समय 60 संघों ने ही शुल्क जमा किया था, इसलिए उनके पदाधिकारियों को ही मतदान का अधिकार मिला था। हालांकि तब चुनाव में मतदान करने की स्थिति नहीं थी, क्योंकि पदाधिकारियों का चुनाव सर्वसम्मति से निर्विरोध हो गया था।
पहली बार बिलासपुर में हुआ था मतदान
एसोसिएशन के 30 साल के इतिहास में पहली बार करीब साढ़े सात साल पहले बिलासपुर में हुए चुनाव में मतदान की स्थिति बनी थी और मतदान से ही पदाधिकारियों का चयन हुआ था, अन्यथा आमतौर पर सर्वसम्मति से पदाधिकारियों का चुनाव निर्विरोध हो जाता है। इस बार रायपुर में होने वाले चुनाव में भी जो स्थिति बन रही है, उससे मतदान होना तय माना जा रहा है। अध्यक्ष पद के लिए बिलासपुर से भी इस बार दावा सामने आ रहा है। इसी के साथ रायपुर के भी कुछ पदाधिकारी चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। अन्य शहरों के कारोबारी भी चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। इस बार आपसी सहमति की संभावना नहीं है। बिलासपुर सराफा एसोसिएशन के कुछ पदाधिकारी तो यह भी कह रहे हैं अब नहीं सहिबो बदल के रहिबो।
नए संघों को भी मतदान का अधिकार
सराफा एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल बरड़िया का कहना है कि प्रदेश में जितने भी सराफा संघ हैं, उनके तीन पदाधिकारियों को मतदान का अधिकार रहता है। अगर इस बार प्रदेश में और नए संघ बनते हैं, तो उनके भी तीन पदाधिकारियों को मतदान का अधिकार रहेगा। कोषाध्यक्ष सुरेश भंसाली के मुताबिक मतदान के अधिकार के लिए यह जरूरी है कि संघ का शुल्क जमा होना चाहिए। जिन संघों का शुल्क जमा नहीं होगा, उनके पदाधिकारियों को मतदान का अधिकार नहीं रहेगा।
आधा दर्जन दावेदार ठोंक रहे ताल
चुनाव के लिए सबसे अहम अध्यक्ष पद काे लेकर अभी से आधा दर्जन नामों की चर्चा है। इनमें से सबसे ज्यादा नाम रायपुर के हैं। दावेदार साफ कहते हैं कि उनका चुनाव लड़ना तय है। ऐसे मे मतदान का होना भी तय है। बिलासपुर सराफा एसोसिएशन के अध्यक्ष कमल साेनी कहते हैं, मैंने अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने का फैसला किया है। सामने चाहे कोई भी हो, मेरा चुनाव लड़ना तय है। अब सर्वसम्मति का सवाल ही नहीं उठता है। इसी तरह से रायपुर सराफा एसोसिएशनके पूर्व अध्यक्ष हरख मालू भी कहते हैं कि अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने का मैंने फैसला किया है। सामने चाहे कोई भी हों, मैं तो चुनाव लडूंगा ही। रायपुर के वरिष्ठ सराफा कारोबारी उत्तम गाेलछा कहते हैं अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने का मैंने फैसला किया है। लेकिन उस दिन अगर मेरे सामने कोई सीनियर होगा तो मैं उनको समर्थन करने का विचार करूंगा, लेकिन मेरे को लगेगा कि चुनाव लड़ने वाला व्यक्ति योग्य नहीं है तो मैं चुनाव लड़ूंगा।