विदेश मंत्री ने यह नही बताया कि पहले कब हथकड़ी में डिपोर्ट किया गया

नई दिल्ली। अमेरिका की तरफ से अप्रवासी भारतीयों को एक सैन्य विमान से हथकड़ियां और बेड़ियां पहनाकर लाने के मुद्दे पर विवाद जारी है। दरअसल, अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के आने के बाद से ही कई देशों के नागरिकों को अवैध रूप से अमेरिका में रहने के लिए निर्वासित (डिपोर्ट) करना शुरू कर दिया गया है। इसका नतीजा यह हुआ है कि कई विकासशील देशों के लोगों को अमेरिका अपने मिलिट्री प्लेन में बिठाकर वापस भेज रहा है। हालांकि, उन्हें जिस तरह से वापस भेजा जा रहा है, उसे लेकर भारत समेत कई देशों में सवाल उठाए जा रहे हैं। इस मुद्दे पर गुरुवार को ही भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने गोलमेाल जवाब भी दिया। लेकिन यह नही बताया कि पहले कब हथकड़ी में डिपोर्ट किया गया था।
इस पूरे घटनाक्रम के बीच यह जानना अहम है कि आखिर यह अवैध प्रवासी, जिन्हें अमेरिका ने भारत वापस भेज दिया है, वह बिना किसी वैध वीजा के अमेरिका पहुंच कैसे जाते हैं? यह डंकी रूट क्या है, जिसकी चर्चाएं तेज हो गई हैं? इसके अलावा जिन लोगों को वापस भेजा गया है, उन्होंने अमेरिका जाने के अपने कठिन सफर और हथकड़ी में वापस भेजे जाने को लेकर क्या कहा है? अमेरिका आखिर अवैध अप्रवासियों के साथ ऐसा सलूक क्यों करता है? और उन्हें वापस भेजने में कितना खर्चा करता है? भारत सरकार अमेरिका के इस कदम पर क्या करने वाली है?
इसके अलावा डंकी का व्यापार चलाने वाले पहले इन लोगों को इक्वाडोर, बोलिविया और गयाना ले जाते हैं, जहां उन्हें आसानी से वीजा ऑन अराइवल या टूरिस्ट वीजा मिल जाता है। इन लातिन अमेरिकी देशों से क्लाइंट्स को कोलंबिया ले जाया जाता है और इसी रूट से होते हुए अवैध प्रवासी डेरियन गैप नाम का जंगल पार करते हैं।
इस जंगल में कोई सड़क या पुल तक नहीं है और यहां जगुआर और एनाकोंडा जैसे खतरनाक जीव भी पाए जाते हैं। यहां से लोग 8-10 दिन में कठिन सफर से जूझते हुए कोस्टा रिका या निकारागुआ पहुंचते हैं और फिर ग्वाटेमाला से लगते हुए मैक्सिको के दक्षिणी बॉर्डर पहुंचते हैं। मैक्सिको के रास्ते आखिरकार लोग अमेरिका में एंट्री लेते हैं।
डंकी रूट से जाने का खतरा कितना?
डंकी रूट कितना खतरनाक होता है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इन इलाकों से गुजरते समय कई लोगों की मौत हो जाती है। वहीं, कई और लोगों को अमानवीय स्थिति का सामना करना पड़ता है। इस रूट में कई बार लोग मानव तस्करों के जाल में फंस जाते हैं। इतना ही नहीं कई देशों में अवैध रूप से प्रवेश करते वक्त लोग पकड़े जाते हैं और जेल में डाले जाते हैं।
कई बार एजेंट या दलाल लोगों को धोखा देकर पैसे ले लेते हैं और लावारिस छोड़ देते हैं। पनामा और कोलंबिया के बीच डेरियन जंगलों में आपराधिक संगठनों की तरफ से दुष्कर्म और लूट जैसी घटनाएं भी आम हैं।
पीलीभीत के पूरनपुर का रहने वाला गुरप्रीत सिंह भी शामिल है। वह 22 लाख रुपये कर्ज लेकर डंकी रूट के जरिये अमेरिकी सीमा पर पहुंचा था, लेकिन वहां सेना ने पकड़ लिया। पुलिस से पूछताछ में गांव बंजरिया निवासी गुरप्रीत ने अपनी पूरी दास्तां बताई। दिल्ली से लेकर आई पुलिस टीम ने पूछताछ के बाद परिजन को सौंप दिया। गुरप्रीत ने बताया कि 22 दिन तक अमेरिका में डिटेंशन कैंप में रखा गया। इस दौरान उसे भोजन तो दिया गया लेकिन नहाने नहीं दिया।
गुरप्रीत सिंह ने बताया कि स्टडी वीजा पर सितंबर 2022 में 15 लाख रुपये खर्च कर नगर में आईलेट सेंटर चलाने वाले संचालक के माध्यम से इंग्लैंड गया था। वहां पढ़ाई के लिए पैसे न होने के बाद उसकी एक और व्यक्ति से मुलाकात हुई, जिसने उसे डंकी रूट से उसे अमेरिका तक पहुंचाने का वादा किया। इसके लिए उसके भाई ने कर्ज लेकर 22 लाख रुपये का इंतजाम कराया। डंकी रूट से अमेरिका भिजवाने वाले ने दिसंबर 2024 को उसे स्पेन का टूरिज्म वीजा दिलाया। स्पेन से मैक्सिको होते हुए उसे बीहड़, सुनसान जंगल के रास्तों से कई किलोमीटर पैदल चलाया गया।
डंकी रूट से अमेरिका भेजने वालों ने उसका मोबाइल बंदूक के बल पर छीनकर तोड़ दिया। 13 जनवरी 2025 को अमेरिका सीमा में पहुंचा दिया गया। अमेरिका सीमा में घुसते ही उसे वहां की सेना ने पकड़ लिया। 22 दिन तक अमेरिका में डिटेंशन कैंप में रखा गया। इसके बाद गलत ढंग से अमेरिका में घुसे भारत के लोगों की सूची के अनुसार सभी को हाथों में हथकड़ी और पैरों में बेड़ियां लगाकर जहाज से गोवान और वहां से अमृतसर हवाई जहाज से लाया गया। गुरप्रीत ने बताया कि इस दौरान उसे खाने को तो दिया गया, लेकिन 22 दिन नहाने नहीं दिया गया।
गुरप्रीत सिंह ने बताया पकड़े जाने के बाद अमेरिकी सैनिकों का हरियाणा को छोड़कर अन्य लोगों के प्रति व्यवहार ठीक था। हरियाणा के लोगों की बोली को लेकर सैनिक उनको असभ्य बता रहे थे। बताया कि हाथों और पैरों में हथकड़ी इस वजह से लगाई गई कि सैनिकों की संख्या कम थी। पकड़े गए लोग कहीं उन पर हमला न कर दें।
अमेरिका से डिपोर्ट होकर लौटे होशियारपुर के टांडा इलाके के सुखपाल और हरविंदर ने डंकी रूट की जो कहानी बयान की है, वो दिल दहला देने वाली है। सुखपाल ने बताया कि उसने एजेंट से बात की थी तो उसने यूरोप के रास्ते वहां से सीधे मेक्सिको की फ्लाइट से भेजने की बात की थी, लेकिन यूरोप पहुंचकर आगे डंकी रूट से जंगलों से पैदल चला कर और समुद्र के रास्ते मेक्सिको पहुंचाया। इस दौरान उन्होंने करीब 15 घंटे एक नाव में समुद्री यात्रा की। फिर उन्हें पहाड़ी रास्ते में जंगलों से होकर करीब 45 किलोमीटर पैदल चलना पड़ा। इस दौरान दो कोई बीमार हुआ या घायल हुए, उसे वहीं मरने के लिए छोड़ दिया गया। रास्ते में कई लोगों की मौत हुई और उन्होंने लाशें पड़ी देखीं।
वह 22 जनवरी को मैक्सिको बॉर्डर क्रॉस कर अमेरिका में दाखिल हुए, तो वहां पर उन्हें अमेरिकन आर्मी ने उन्हें पकड़ लिया और उन्हें वहां से जेल ले जाया गया। उन्हें पूछा गया कि वे अमेरिका में क्या करने आए हैं, तो सबका कहना था कि उन्हें काम नहीं मिला तो काम की तलाश में वहां आए हैं। इस पर उन्हें जेल ले जाकर एक कमरे में बंद कर दिया गया। उन्हें कहा गया था कि 14 दिन बाद उन्हें वर्क परमिट दिया जाएगा, लेकिन उन्हें जेल से निकाल कर सीधे ही डिपोर्ट कर वापस अमृतसर भेज दिया गया।
हरविंदर ने बताया कि उसे एजेंट ने यहां से सीधे मेक्सिको ले जाने की बात कही थी, लेकिन फिर कहा कि बात नहीं बन रही और उसे कतर ले जाया गया। वहां से फिर उसे ब्राजील ले जाया गया और फिर पेरू से फ्लाइट की बात कही गई। फिर उसे समुद्र के रास्ते चार घंटे एक छोटी प्लास्टिक की नाव से ले जाया गया जो रास्ते में डूबने ही वाली थी पर किसी तरह वह बच गए। उसके बाद उन्हें लगातार पैदल चला कर मेक्सिको की सीमा पार कराई गई। इस दौरान खाने-पीने के लिए कोई इंतजाम नहीं था। कभी कभार उनको ब्रेड मिल जाती, जो पानी में भिगो कर ही खानी पड़ती थी और कई बार भूखे ही सोना पड़ता था। उन्होंने बताया कि उनके कई साथी रास्ते में ही दम तोड़ गए जो लड़का रास्ते में बीमार हो जाता था उसे वह वहीं पर छोड़ जाते थे और कई जो कोई ऊंची आवाज में बात करता था, तो वह उसको गोली भी मार देते थे।
प्रवासियों को वापस भेजे जाने पर क्या बोले जयशंकर
अमेरिका की ओर से 100 से अधिक अवैध भारतीय अप्रवासियों को वापस भेजे जाने पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने गुरुवार को संसद के दोनों सदनों में बयान दिया। विपक्ष के हंगामे के बीच जयशंकर ने कहा कि अमेरिकी अधिकारियों की ओर से की गई ऐसी कार्रवाई कोई नई नहीं है। उन्होंने पिछले 15 वर्षों में वापस भेजे गए भारतीयों के आंकड़ों का भी खुलासा किया। मंत्री ने राज्यसभा को बताया कि 2009 से अब तक कुल 15,756 अवैध भारतीय अप्रवासियों को अमेरिका से वापस भारत भेजा गया है।
जयशंकर ने कहा कि अमेरिका से भारतीयों को निर्वासित किए जाने की प्रक्रिया नई नहीं है और यह सभी देशों का दायित्व है कि यदि उनके नागरिक विदेशों में अवैध रूप से रह रहे हैं तो उन्हें वापस लें। विदेश मंत्री ने कहा, ‘माननीय सदस्य जानते हैं कि लोगों के बीच परस्पर आदान-प्रदान अमेरिका के साथ हमारे गहरे संबंधों का आधार है। वास्तव में किसी भी अन्य रिश्ते की तुलना में गतिशीलता और प्रवासन ने गुणवत्ता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।’
उन्होंने कहा कि सदन सरकार के दृष्टिकोण को भी साझा करेगा कि वैध आवागमन को प्रोत्साहित करना और अवैध प्रवासन को रोकना हमारे सामूहिक हित में है। जयशंकर का कहना था, ‘वास्तव में, अवैध आवागमन और प्रवासन में कई अन्य संबंधित गतिविधियां शामिल हैं, जो गैरकानूनी भी हैं। इसके अलावा, हमारे नागरिक जो अवैध रूप से आवागमन में संलिप्त होते हैं, वे स्वयं अन्य अपराधों का शिकार हो जाते हैं। इस क्रम में ये सभी अमानवीय परिस्थितियों के शिकार हो जाते हैं।’
उन्होंने कहा कि इस तरह के अवैध प्रवासन के दौरान दुर्भाग्य से मौतें भी हुई हैं तथा जो लोग लौट आए, उन्होंने अपने कष्टप्रद और भयावह अनुभवों को साझा किया है। विदेश मंत्री ने कहा, ‘अगर वे विदेश में अवैध रूप से रहते हुए पाए जाते हैं तो यह सभी देशों का दायित्व भी बनता है कि वे अपने नागरिकों को वापस लें। यह स्वाभाविक रूप से उनकी राष्ट्रीयता के स्पष्ट सत्यापन पर आधारित है। यह नीति किसी एक विशिष्ट देश पर लागू नहीं होती, और ना ही केवल भारत द्वारा इसका अनुसरण किया जाता है। यह अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एक सामान्य सिद्धांत है।’