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त्योहारी सीजन में नहीं होगी कटौती, अब छत्तीसगढ़ में भरपूर बिजली

रायपुर(realtimes) छत्तीसगढ़ में बिजली की लगातार ज्यादा खपत से इस बार त्योहारी सीजन में भी बिजली कटौती का खतरा मंडराने लगा था, लेकिन अब भरपूर बिजली होने के कारण कोई कटौती नहीं होगी, क्योंकि अब इधर मानसून में ही बिजली की रिकॉर्डतोड़ खपत होने के बाद अब ज्यादा खपत पर पानी फिर गया है क्योंकि अब फिर से मानसून सक्रिय हो गया है। ऐसा होने से जो खपत 61 सौ मेगावाट के पार हो गई थी, वह अब पांच हजार मेगावाट से कम हो गई है। ऐसा होने से अब त्योहारी सीजन में बिजली की कमी नहीं होगी।
मानसून की बेरुखी के कारण बिजली की खपत ने अगस्त और सितंबर में खपत का नया रिकॉर्ड बनाया है। देश में मौसम के तेवर लगातार बदलने के कारण बिजली की खपत का ग्राफ ऊपर-नीचे हो रहा है। अगस्त का माह बड़े रिकॉर्ड वाला रहा है। पहले खपत आधी हो गई इसके बाद खपत ने गर्मी से भी ज्यादा खपत का नया रिकॉर्ड बना दिया। गर्मी में इस बार अप्रैल में खपत 5878 मेगावाट तक गई थी, इस रिकॉर्ड को ब्रेक करके 17 अगस्त को 5892 मेगावाट का नया रिकॉर्ड बना। इसके बाद खपत कम ज्यादा होती रही। बारिश में ब्रेक लगने के कारण अगस्त के अंत से खपत फिर बढ़ने लगी और सितंबर के पहले ही दिन खपत ने एक नया रिकॉर्ड बना दिया। इस दिन खपत 6114 मेगावाट तक चली गई।
अब राहत
सितंबर में अब बारिश होने के कारण खपत का ग्राफ लगातार गिर रहा है। इस समय खपत 45 सौ मेगावाट तक आ गई है। पीक आवर में शाम को जब उद्योगों में भरपूर बिजली लगती है, तब भी खपत 48 सौ मेगावाट ही हो रही है। एक तो एसी और कूलरों का चलना कम हाे गया है। इसी के साथ अब कृषि पंप भी चलने कम हो गए हैं। कृषि पंपों पर जहां रोज सात से आठ सौ मेगावाट बिजली लग जाती है। वहीं एसी और कूलर का लोड ही करीब डेढ़ हजार मेगावाट हो जाता है। इन दोनों का लोड कम होने के कारण अब खपत में करीब हजार से 12 सौ मेगावाट कम हो गई है।
त्योहारी सीजन में नहीं होगी कमी
इस माह से ही त्योहारों सीजन प्रारंभ हो गया है। गणेशोत्सव के बाद नवरात्रि और फिर दीपावली आएगी। पॉवर कंपनी के अधिकारियों का कहना है, दीपावली से पहले ही फसल तैयार होने के कारण कृषि पंपों का लोड कम हो जाएगा। इसी के साथ अगले माह से मानसून समाप्त होने के बाद ठंड आ जाएगी तो एसी और कूलर भी नहीं चलेंगे। ऐसे में त्योहार में खपत पांच हजार मेगावाट से कम ही रहेगी। इतनी खपत के लिए बिजली पर्याप्त है। अपना उत्पादन जहां 25 से 26 सौ मेगावाट होगा, वहीं सेंट्रल सेक्टर का शेयर साढ़े तीन हजार मेगावाट है। ऐसे में छह हजार मेगावाट खपत तक परेशानी नहीं होती है।

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